XI
As Anala Trijala told nie of the building '
Of a blue, bridge on the blue I wondered, the
mystery behind I he creation is indeed true.
I thought cal my eventful life at that
vtintage point — my birth from the womb
of Mother Earth who stands for colour, vivacity.
My foster father Janaka, called 'Videha', who
was the quintessence of asceticism, sans
any appeal for material pleasures. My
husband, who in Hindu cultural imagination
stands for maryada purusottam, and me, Vaideshi,
merge in the cultural contours of pious womanhood.
There are three hundred Ramayanas written
in different versions. Which one would I choose
to articulate ? The story of my own 'denial'
of the 'self'? The 'Neti'? Negative capability
of Sita? The story of the enlightening and
nationalistic politics since ages where
woman has to be the victim? About the virtues
of a woman? Her intrinsic worth? The valor of Rama,
the Warrior god? Or the futility of war?
Or my story of a silent suffering soul who
denied to bear a child till my husband
would be restored to his throne? Or the tale of a derelict
mother, or that of an autonomous, organic woman?
Sita, a character eternally absent in the story
of her husband? Making appearances momentarily, now and then!
At that moment, I was jerked to consciousness
by Trijala who told me the story of the bridge on
the blue. Rama's rage on the lackadaisical
Ocean God who didn't appear at first in person.
My Lord took out fierce arrows to separate the
Sea into two, causing panic among the sea creatures.
Here I remember the Holy Bible, the story of Moses from the
Old Testament. The procession of Moses in its long journey to Canaan;
encamped thrice—in the Egyptian Frontier, in the Great Bitter Lake
and at the northern tip of the Red Sea. The Pharaoh pursued them
and the Israelites despaired. Exodus chronicles that God
divided the waters so that they passed safely athwart on dry ground.
When the
Egyptian army endeavored to follow, God endorsed the waters
to return upon them and drown them. Moses’ troop came to Elim where twelve water springs and 70 Palm trees greeted them, from Elim from they set out.
After 45 days they reached the wasteland of Sin between Elim and Sinai.
From there they reached the plain of Rephidim, crossing the Red Sea.
You too, oh Rama, wanted to divide the sea to reinforce Dharma.
Viewing your angst, the Sea-God appeared instantly, folded-hands,
View advising Nala to touch each stone that would float in his
touch, as a boon he had received that if he touches a thing that would float on water.
The bridge was built by the vanaras, the legendary squirrel
too contributed; the battalions marched towards Lanka armed
with destructive warfare. The vaanara army generals being Nila, Angada,
Nala, Sweta, Kumuda, Rambha, Sarabha,
Panasa, Vinata and Krathana. Why does
history forget these heroes who fought for the
dignity of a woman? And to restore virtue?
Oh my god! What happened? The inevitable!
You reached Lanka on the Suvela mount.
Ravana played the trick final. His most
powerful sorcerer Vidyujjuha produced your head.
Your husband is slain,you are helpless now,
I was told. was shocked to death, and fell unconscious.
The kindest ogre, Sarama, told me the truth
of the illusory head of dead Rama, fraudulently formed.
That evening Sugreeva chanced upon Ravana
He sprang up on him and hauled his throne
Reducing Ravana to collapse, he went to Suvela mountain.
I was told, you beseeched Sugreeva to avoid
such reckless act, as he himself was a king.
Monkey generals be the four Lanka gates, Lakshmana along,
You sent, one last time, Angada as your envoy.
To reason with Ravana and review this fanatical drama
but in vain. Both the battalions were ready, finally.
Terrible roars reverberated the air, water, earth.
Rakshashas festooned with terrible weapons
and monkeys bedecked with trees, stones and teeth.
The civilizations have seen men fighting men over women.
In the Iliad, Odyssey, the Mahabharata and the Ramayana,
woman has always been a trophy, a guiding agent
for men to show their bravado since time immemorial.
Objectification of women has been there in Western and Eastern civilization, in myth and folklore, in all the oral-written continuum
No wonder the good and the evil fought once again for a woman
Furious duels arose between monkeys and the demon.
Duets between Indrajit -Angada; Sampati -Prajaghna;
Hanuman -Jambumali; Vibhishana -Shatrughna; Gaja-Tapana;
Nila-Nikubha; Sugreeva-Praghasa; Lakshmana
with Virupaksha and Agniketu; streams of blood flown.
XI
अनल, त्रिजला ने कहा मुझे, नील-सिंधु पर बनेगा सेतु
सोचा, इस रचना के पीछे होगा ईश्वर का कोई हेतु
आगे जाकर कहलाएगा यह ‘राम-सेतु’ ।
तभी मैं सोचने लगी अपना अतीत जीवन
अद्भुत घटनावली से परिपूर्ण
जन्मी धरती माँ के गर्भ, खिलती जीवंत वर्ण ।
मेरे पिता ‘विदेह’ जनक, शास्त्र-मर्मज्ञ,पर भौतिक सुखों से अनभिज्ञ
मेरे पति, मर्यादा पुरुषोत्तम, हिंदू संस्कृति के सुविज्ञ
और मैं, वैदेही, पवित्र नारीत्व का सांस्कृतिक यज्ञ ।
प्रकाशित हुए तीन सौ रामायण के विभिन्न संस्करण
समझ नहीं पा रही, किसका करूँ मैं चयन ?
बताने को, ‘स्व’ के ‘परित्याग’ पर मेरा कथन ।
'नेति'? सीता की नकारात्मक क्षमता का आकलन ?
उजागर करती राष्ट्रवादी राजनीति
जिससे युगों से झेल रही नारी विपत्ति।
नारी के गुण या उसका अंतर मन ?
राम की वीरता, या योद्धा भगवान?
युद्ध की सार्थकता या अवमान ?
या मेरी कहानी- एक मूक पीड़ित आत्मा का रुदन
नहीं करेगी वह गर्भ-धारण, जब तक नहीं मिलेगा सिंहासन ?
या परित्यक्त माँ का क्रंदन या मनमौजी महिला का गुंठन ?
सीता ‘रामगाथा’ में रहती सदैव अदृश्य
क्षण भर देती दिखाई, फिर हो जाती तिरोहित !
क्या कही जाएगी सीता अवहेलित ?
झंकृत हुई मेरी चेतना वीरानी,
जब सुनी त्रिजला से सेतु-कहानी
धधकी राम की क्रोधाग्नि, जब सागर-देवता हुए बेमानी ।
मेरे भगवान ने निकाले भयंकर बाण
चाहते थे करना,समुद्र का विभाजन
पैदा हुआ समुद्री जीवों में खलबली का वातावरण ।
याद आ गई, बाइबल में मूसा के कनान-दीर्घ-यात्रा का दृष्टांत
ग्रेट बिटर झील, मिस्र की सीमा और लाल सागर के उत्तरी सिरे की विश्रांति
फ़रोहा का अनुकरण, इजरायलियों की आशाओं पर हुआ तुषारापात ।
कूच का इतिहास कहता है- भगवान ने किया पानी का विभाजन
जाने को आर-पार सुरक्षित रूप से सूखी जमीन
पानी फिर से जुड़ा, जब मिस्र की सेना ने किया अनुकरण।
मूसा की टुकड़ी पहुंची एलिम,बिना किसी व्यवधान
जहाँ मिला उन्हें बारह झरनों और 70 ताड़-पेड़ों का अभिवादन,
डेढ़ महीने बाद एलीम से किया ‘सिन’ को प्रस्थान।
सिन- एलिम और सिनाई के बीच की बंजर जमीन
वहाँ से पहुंचे लाल सागर पार करते रेफ़िडिम के मैदान
हे राम, तुम भी चाहते थे धर्म-संस्थापन के लिए समुद्र-विभाजन ।
देख तुम्हारा कोप,समुद्र-देवता ने तुरंत दिए दर्शन,
करबद्ध नल को दिया सहज वरदान,
स्पर्श करोगे जो प्रस्तर, पानी पर तिरेगा तृण-समान।
वानरों ने किया पुल का निर्माण,
याद रहेगा पौराणिक गिलहरी का योगदान;
नील,अंगद के नेतृत्व में वानर-सेना ने किया लंका-प्रस्थान ।
नल, स्वेत, कुमुद, रंभा, सरभा,पनासा, विनता और कृथना
इतिहास भूला इन वीरों को,जिनकी शहादत पर बची नारी-गरिमा
और हुई धर्म की स्थापना।
हे राम! क्या हुआ? ऐसा अपरिहार्य? तुम आए लंका की सुवेल-पर्वतमाल
रावण ने चली अपनी अंतिम चाल,
उसके मायावी विद्युज्जुहा ने फेंकी तुम्हारी कटी मुंड-माल ।
कहकर-‘तुम्हारे पति मारे गए, अब तुम हो असहाय’,
तुम्हारी मृत्यु से मैं हतप्रभ, हुई अचेतन,पसरा चारों ओर भय
दयावान सरमा ने बताया सत्य, यह है भ्रम, केवल माया।
उस शाम सुग्रीव ने किया रावण पर आक्रमण
वह उछलकर बैठा उसके सिंहासन
रावण को नीचा दिखाकर, किया सुवेल पर्वत पर पदार्पण ।
सुना मैंने, कहा सुग्रीव को तुमने, न करें आगे से ऐसे धृष्ट काज,
चूंकि वह स्वयं है एक राजा
लक्ष्मण समेत वानर सेना पहुंची लंका के चारों दरवाजा।
अंतिम बार भेजा अंगद को, बनाकर अपना दूत
रावण के साथ करने को विचार-विमर्श
मगर सब व्यर्थ, न हो सकी शांति ।
दोनों सेनाएँ आमने-सामने, हवा, पानी, जमीन पर भयानक गर्जन
राक्षसों ने की, खतरनाक अस्त्र-शस्त्रों की झंकार
दाँत किटकिटाते वानरों के पास बड़े-बड़े पेड़ और पत्थर ।
सभ्यताओं में अनेक पुरुषों का महिलाओं के लिए युद्ध के उदाहरण
चाहे इलियड हो या ओडिसी, चाहे महाभारत हो या रामायण,
उसके लिए अनादि काल से पुरुष करते रहे अपनी वीरता का प्रदर्शन ।
चाहे पश्चिम हो या पूर्व, चाहे मिथक हो या लोककथा,
चाहे मौखिक हो या लिखित साहित्यिक गाथा
कथानकों में महिला हमेशा से रही यथार्थ ।
आश्चर्य नहीं! फिर से महिला के लिए सत-असत की लड़ाई
वानर-दानव की उग्र हाथापाई,
इंद्रजीत-अंगद, संपाति-प्रजाघ्न,
हनुमान-जंबुमाली; विभीषण-शत्रुघ्न; गज-तपन;
नील-निकुंभ; सुग्रीव-प्रघास; लक्ष्मण की
विरुपाक्ष और अग्निकेतु के साथ;
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