VI
I was in the forest in the sacred presence
of fire, skies, and compliant passions.
Destiny unfolded itself, Valmiki wrote
the tale in the Aranya Kando. We saw
the Dandaka Forest, confronted Viraadha,
redeemed the sages, cursed by him.
Cool waters of the hermitage of Sage Sharabhanga
and Saga Suteekshna, the onerous attainments
of tapas, our compelling veneration,
their native heavens, spouts of bounty
livid aspiration of the body for surmounting
to the province of divinities, the autonomy
of true Brahmatej, the ultimate triumph
of the soul-force of the Rishies. Forests,
the paragon of all wisdom, the definitive store house
in Vedic philosophy, were matchless in our
reverential approbation. We were transformed amongst
the paradigms of hermits and the
material forms of sacraments. I marveled at the
anthropophagy of Janasthana, the savage
mesosphere, the barbaric supremacy of creatures!
Could someone cat up living beings neither
for survival nor for customary habits, but for a penchant
for the same breed! The sages advised
me, Rama and Lakshmana, the comely humans,
to elude Dandaka Aranya. What has altered in the society
since then, oh Almighty? Even today, there are men
eating flesh of loving kids and draining their tender bones
in a drain in Noida; there are parents killing and
somersaulting dead bodies in the trauma centre of AIIMS.
Among the Vaishnavaites, Shaivites and
Shaakties, the rakshasas were
ardent parishioners of Shiva, receiving ostentatious
powers, wielded magical supremacies, belonging
to a lethal ethnicity. Can evil win
over good? Perhaps yes. For hatred which
intermediate love, can scare man to ill,
for patience, penitence cannot sovereign fill
for obedient dedications resign the will.
Many a demon hovered, charmed by the
magnetism of my bounty, wished topossess
me like a haughty object, like Kubera's
treasure or the Pushpaka aircraft. Yes
my lord, woman is an entity of desire
forever, then and now, in this antagonistic world.
In your Rama Rajya, is this the law of nature?
Oh you preserver of justice, you accomplished
Vino Jana rakshna', the weak man's protection
and Imitra jana rakshna' in the Kishkindha
kanda. One day Demon king Ravanas' sister
Shuurpanakha, enamored by you and Lakshmana,
was eating me up when brother
Lakshmana chopped her nose off. Ravana
sent Maareecha in the disguise of the Maya Mriga.
The sociological, demographic, ethnological
pursuits of you, oh Rama, in the forests,
is remembered by Saga Viswamitra and
Saga Valmiki, for ages to come. Viradha
bothered Sage Sharabhanga, attempted to
abduct me, and you beheaded him. Tell me, is woman
only a means to generate or eliminate the
negative powers? Sage Suteekshna asked
you to preserve the ecology, the forests,
rendered into graveyards of saints and sages. I
take the intimation and appeal humanity today
to reserve the environs, the rich natural gifts.
Like Rishi Agastya and Lopamudra did
for years with benediction. I was
happy in my abode of love in Panchavati,
the blissful exile in Mahua forest, the hut made
by your peerless brother, our company
of Jatayu, the Vulture King, and his
sixteen daughters, me conjuring up at the
living relationship between incarnate species.
Our banyan trees, with their roots and fruits, galloping at the
perennial Godavari river, safeguarded by
Nature's philanthropy, deers, lotus pools,
Peacocks, the flora and fauna, music and fragrance .
But as destiny waited, blePding, wringing Suurpanakha
with hopes of revenge for being disfigured
by Lakshmana beseeched brother Ravana.
Ravana sent Mareecha in disguise of a golden deer.
Me, Vaidehi got enamored by the
glee, as if its body an amalgamation of Nature and treason.
"This enchants me, nowhere had I seen such seduction
such elegance, such a living being of delight!
Let me have it, let me have it, let me have it!!"
Whosoever has said that a woman's greed and a man's wrath
has to be controlled, is true to the essential.
Real or just enchantment, you decided to get me the deer.
Beyond and abysmal into the forest its lure
so elusive, such out-of-the-way, adroit, enticing,
zoomed like lightening the wonder-deer.
Your powerful arrow hit the deer and it died
simulating your voice, "Oh Lakshmana, oh my Sita dear!"
I urged Lakshmana to go and search his brother.
Knowing well Mareecha's necromancies, Lakshamana
disobeyed me, and I turned fire.
He left, anxious, embossing the Lakshmana-Rekha then and there.
Came Ravana in a sage's austere camouflage
begging alms at our door, pleaded me to cross
the line; and then seized me Ravan, the treacherous.
I wailed, shrieking the forest, and Jatayu came
to my rescue, but in vein. The crime of the chaos
against all sanctities was done with my abduction.
Frailty, the name is not woman. But I have
learnt, the feeble and freckle mind of a woman
for the golden-deer became her hydra-headed monster.
You had advised me to ignore the deer because Nature
doesn't produce animals of gold. Going beyond her
I had summoned the wrath of Mother Nature.
VI
मैं अग्नि,गगन और प्रकृति के सुंदर भावों की
पवित्र उपस्थिति में थी वन में
नियति खुद सामने आई, जैसा वाल्मीकि ने लिखा
‘अरण्यकांड’ में।
हमने देखा,
दंडक-वन में विराध का विनाश ,
उसके द्वारा शापित ऋषियों का परित्राण।
ऋषि शृभंग,ऋषि सुतीक्ष्ण के आश्रम का ठंडा जल
तपस्या का अनंत गुणगान
हमारा मनमोहक वंदन,
उनके मूल लोक ,
शारीरिक दिव्यता की प्रबल इच्छा
स्वायत्त ब्रह्मतेज सच्चा,
परम विजयी
ऋषियों का आत्म-बल,वन
ज्ञान का प्रतिद्वंद्, अतुलनीय वैदिक दर्शन,
हमने पहना
साधुओं का परिधान
संस्कारों का भौतिक वसन।
मैं अचंभित था देखकर
जनस्थान का मानवशास्त्र,
प्राणियों का बर्बर वर्चस्व !
क्या कोई जीवित प्राणियों को खा सकता है
अपना अस्तित्व बचाने के लिए
या अपनी प्रथागत आदतों के लिए ?
संतों ने सलाह दी
मुझे, राम-लक्ष्मण और मनुष्यों को,
दंडक अरण्य में फैली अराजकता को समाप्त करने की,
कोई बदलाव अभी भी, ओह सर्वशक्तिमान?
आज भी ऐसे लोग हैं, जो बच्चों का मांस खाते हैं
उनकी हड्डियों को नोएडा के नाले में फेंकते हैं ।
माता-पिता की हत्या करते हैं
एम्स के ट्रॉमा सेंटर में शवों का अंतिम संस्कार करते हैं
वैष्णव, शैव और शाक्त में राक्षस होते हैं ।
शिव के परम भक्त
ठोंगी और जादुई शक्तियों वाले
समाज को बर्बाद करने वाले ।
क्या बुराई जीत सकती है अच्छाई से ?
शायद हाँ, मनुष्यता के लिए बीमारी है हीनता
धैर्य के लिए, तपस्या नहीं है संप्रभुता ।
भक्तों के लिए इच्छा का परित्याग
कई दानव मँडरा रहे थे मंत्रमुग्ध होकर
सौंदर्य से आकर्षित होकर ।
मैं कामना करती हूँ
पाने को मेरे लिए घृण्य सामान
कुबेर का खजाना या पुष्पक विमान।
हाँ, मेरे स्वामी,
हमेशा से स्त्री कामना की वस्तु रही है
तब भी और अब भी, इस विरोधाभासी दुनिया में।
तुम्हारे रामराज्य में, क्या यह नियम था
‘दीन जन रक्षना’,
या किष्किंधाकांड की ‘मित्र: जन रक्षना’?
एक दिन रावण की बहन शूर्पणखा,
तुम और लक्ष्मण पर आसक्त
आई मुझे खाने लिए अस्त्र
लक्ष्मण ने काटी नाक
रावण ने भेजा माया मृग
मारीच को हमारे दिग ।
हे राम ! याद रहेगा युग-युग तक वन का
समाजशास्त्र, जनसांख्यिकी, नृवंशविज्ञान
विश्वामित्र और वाल्मीकि का गहन अध्ययन
विराध परेशान हुआ
मुझे उठाने जा रहा था शृभंग
तुमने उसका कर दिया सिर-भंग ।
बताओ, क्या औरत नकारात्मक शक्तियां
केवल पैदा या समाप्त करने का एकमात्र साधन ?
ऋषि सुतीक्ष्ण ने कहा, “करो, वन-पारिस्थितिकी का संरक्षण”
मैं करती हूँ अपील
आत्मीयतापूर्वक मानवता से करबद्ध
प्राकृतिक-संसाधनों के संरक्षण की निबद्ध
मैं थी पंचवटी में अपने प्रेम-कुटीर में खुश,
महुआ जंगल का वनवास
वनवास का वह आवास
बनाया जिसे तुम्हारे भाई लक्ष्मण
हमारे साथी गिद्ध राजा जटायु
और उनकी सोलह बेटियाँ परमायु ।
जो देख रही थी हमारे
आपसी प्यार-बंधन
अवतरित प्रजातियों से उनके जीवित संबंध।
बारहमासी गोदावरी नदी के तट
हमारा बरगद-पेड़ फैला जड़ों-फलों समेत
सुरक्षित, जहां प्रकृति और जीव-जंतुओं का संगीत।
लेकिन नियति को कुछ और था मंजूर
लहूलुहान शूर्पनखा के प्रतिशोध की धार
भाई रावण से शिकायत की बार-बार ।
रावण का ‘स्वर्ण मृग’ वाला मारीच
मैं, वैदेही हो गई मोहित
उसकी काया प्रकृति-राजद्रोह से मिश्रित ।
"मैं हुई मंत्रमुग्ध,ऐसा प्रलोभन,देखा नहीं कभी जीवन
ऐसा आनंद और लालित्य जीवन में हो!
मेरे पास हो, मेरे पास हो, मेरे पास हो !!
कहावत है-
औरत का लालच:पुरुष का प्रकोप
अनियंत्रित हुए अगर आएगा भूकंप
फैसला किया तुमने लाने को वह हिरण
मेरी समझ से परे लालच का जंगलीपन
स्वर्ण-मृग का मायावीपन।
तुम्हारे शक्तिशाली तीर ने मारा हिरण
"हे लक्ष्मण, हे प्रिये सीता !" आवाज का अनुकरण
लक्ष्मण से आग्रह भाई का करो अन्वेषण ।
लक्ष्मण जानता था मारीची की माया
कर रहा था मेरी अवज्ञा
लक्ष्मण-रेखा खींच चला वह अरण्य।
ऋषि-वेश में आया रावण
हमारे द्वार पर करने भिक्षाटन
रेखा पार करते ही ले गया दशानन ।
मेरे बचाव को आया जटायु
रावण ने काटे उसके पखेरू
अपराध अपहरण का हुआ मेरु ।
धोखा, तुम्हारा नाम नहीं है नारी
लेकिन मैंने सीखी औरत की कमजोरी
स्वर्ण-हिरण ही उसका अरि ।
तुमने मुझे कहा था हिरण नहीं हो सकता स्वर्ण
प्रकृति पैदा नहीं करती स्वर्ण प्राणी-धन
करने से उल्लंघन,प्रताड़ित हुआ मेरा जीवन ।
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