I am Sita, Janaka-Nandini-Janaki, the doting daughter
of my father, king Janaka. I am born in a furrow from
mother earth in the sanctified sacrificial grounds.
I am utterly and unquestioningly in love.
I am the resolute, acquiescent,
enthralling wife of Lord Rama ; I am here
to keep the reserve of the prevalent onuses of a patriarchal
universe. Sitayah charitam mahat : this
tiara of a reverberant and talismanic phrase
they have put as my crown. My three sisters,
Urmila, Mandavi and Srutakriti married to
Rama's brothers, Lakshmana, Bharata and Satrughna.
May I call this 'sisterhood'? Their destinies
are as complex as mine, but half-as-eventful.
I am entwined by many a women of substance:
Anasuya, Sage Atri's wife; and then, my
concords with the legendary Gargi, Maitreyi,
Katyayani, Arundhati, Lopamudra, Ahalya.
Then the Rakshasa and Vanara queens,
Mandodari and Tara. It's a women's world. Female -bonding.
The tales of incredible exoneration and extraction.
My story is empirical — you may revolutionize
or rationalize its ingredients. Ravana, my abductor,
was ten-headed ! Hanuman, my
devotee, could wax or wan in size ;
Kumbhakarna was a gargantuan demon
in a prolonged slumber. Rama built
a bridge over the sea to reach me. Don't
ask, "is it possible ?" Don't question the
uncanny exploits. Don't raise eyebrows.
What is momentous in my story is the
Sita-ness of Sita, the pativrata,
the holy, fair and chaste woman, and
the force and grace that emanates from
my character with equivalent rationalization ,
in spite of the seeming metamorphoses.
I have seen many lives in one life.
Necromancy, the blackest of all the black arts,
played a trick in my epic action. The
magic deer, the Maya Sita, the demons,
the snake-darts. But necromancy has
never been the ultimate factor in my hurt, indignant fate.
It is„ rather, the love and the chastisement, which
have time and again pushed me to square-one.
In my epic recital, the essential apprehension
is to fathom Rama, my humane husband, my lord.
The rest add up to the elements of the
invisible wrenches of prudence and to the
dynamics of my free-will. Yes, I am Sita,
the willingly-exiled woman.
This is no archaism with a reckoning.
Nevertheless, the vagrant of the human mind,
the advance of knowledge and power,
of the empowerment of the ecofeminist, and above all the
dreaded prospect of technology effecting the human brain
ancient. There is my small little song that embraces the key to the castles of the spirit, and my creative schedules.
My epic, the center stage concert vis-a-vis
the flora and fauna, steadily discloses itself
before you, oh terrestrial and cosmic beings!
Oh men and women, oh trees, rocks, rivers, clouds,
the sky, the sun, the moon, the stars and the comets!
I am ageless, timeless, beneficent and compassionate.
I am a deathless goddess, ever alive in each woman
you encounter. My quintessential story, reverberating from
the traps of Earth -Mother, is no vain-claim !!
I designate my torment and wield my sovereignty
by retiring from Rama after he asks me to
take a second test of fire ; but I have completed
the full cycle of my professed duties of
daughterhood, wifehood and motherhood.
Beyond patriarchal manipulations and domestic blues.
My heartrending history momentously links the Rama-Ravana
stories.
In a hypothesis, I have the obligation to repeat
this immense and magnificent record, hence this poem.
II.
जनक-नंदिनी-जानकी- मेरा नाम सीता
मैं इकलौती पुत्री, राजा जनक मेरे पिता
यज्ञ-पूजिता पावन धरती मेरी माता ।
पूरी तरह निर्विवादित प्रिया
पक्के इरादों वाली संतोष हिया
भगवान राम की सुंदर भार्या ।
पितृसत्तात्मक समाज की प्रचलित धारा
बनी “सीताय चरितम् महत:”- का मुहावरा
और मेरे सिर का आकर्षक जेवर ।
उर्मिला, मांडवी और श्रुतिकीर्ति-मेरी तीन बहन
जिनका हुआ पाणिग्रहण सम्पन्न
राम के भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ।
क्या मैं इसे 'बहिनापा' कहूँ? या कुछ और कथन ?
उनकी नियति भी मेरे जितनी जटिल,लिए अधूरापन
अनेक प्रभावशाली महिलाओं से हुए मेरे कथोपकथन :
ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया,
प्रसिद्ध गार्गी, मैत्रेयी,
कात्यायनी, अरुंधति, लोपामुद्रा, अहल्या ।
फिर असुर और वानर रानी,
मंदोदरी और तारा
इन महिलाओं के दुनिया की कहानी ।
उन नारियों का बंधन
उनके अविश्वसनीय संस्मरण
उनकी चमत्कारी कहानी-किस्सों के निष्कर्षण।
मेरी कहानी का आधार है अनुभव
शोध कर सकते हो तुम जब-तब
या दे सकते हैं अपने तार्किक विभव ।
मेरा अपहरणकर्ता दस सिर वाला रावण
लघिमा-गरिमा में सिद्धहस्त हनुमान
दीर्घ निद्रालु पेटू दानव कुम्भकर्ण ।
राम-सेतु बना मेरे खातिर समुद्र के धरातल
"यह संभव है?" मत पूछना यह सवाल
भौहें चढ़ाकर, निकालना मत मेरी नकल ।
मेरी कहानी में जो भी है थोड़ा-बहुत कथानक
वह है सीता का सीधा-सादा सीतापन,
पवित्र, निष्पक्ष और सती महिला का वर्णन।
मेरा अनुग्रह और चारित्रिक बल
अलंकारिक तर्कों के बावजूद हुआ सफल
और किया जन-मानस का काया-पटल ।
मैंने अपने जीवन में देखे अनेक जीवन,
काली-विद्या का घनघोर कालापन
जिससे हुआ मेरी महाकाव्यिक भूमिका में अधोपतन।
स्वर्ण-हिरण, राक्षस, साँप-सँपेरे, माया सीता
काली-विद्या ने कभी नहीं पहुंचाया आघात
और नहीं किया बुरे भाग्य को आमंत्रित ।
मगर प्यार और पवित्रता के नाम
बार-बार धकेला गया मुझे चौराहे पर खुले-आम
मेरे महाकाव्यिक भूमिका को किया गया बदनाम ।
मेरे पति मेरे प्रभु राम एक ओर
बाकी अदृश्य गतिशील संघर्ष दूसरी ओर
तान रहे थे मेरे विवेक और स्वतंत्र इच्छा की डोर ।
हां, मैं सीता हूँ निरपराध
स्वेच्छा से निर्वासित नारी
बिना किसी अपवाद ।
फिर भी, मानव-मन का आवारापन,
ज्ञान-शक्ति का उर्ध्वीकरण ,
पर्यावरण-नारीवादियों का सशक्तिकरण ।
और सबसे महत्वपूर्ण मानव-मस्तिष्क
प्रौद्योगिकी से होगा प्रदूषित
लगेगा उस पर खतरनाक कलंक।
मेरा महाकाव्य है- मेरी आत्मा का द्वार और मेरे सर्जन का कुंजी-पटल
मेरा महाकाव्य दर्शाता है- नाट्य-मंच बनाम वनस्पतियों और जीवों का संबंध अटल
धीरे-धीरे तुम्हारे सामने लाता है पार्थिव और ब्रह्मांडीय जगत-जंजाल !
पेड़-पौधे,नदी-नाले, आकाश-बादल, सूरज, चाँद, सितारे,धूमकेतु,नर-नारी !
मैं हूँ अमर, कालजयी, दयालु और हितकारी
मैं हूँ मृत्युहीन देवी हूँ, अधिवास मेरा प्रत्येक जीवित-नारी ।
यह सत्य है, मैं भूमिजा,कैसे बताऊँ मेरी व्यथा ?
नहीं मिटा सकती थी अपनी संप्रभुता,
राम ने जब कहा,रचूँगा दूसरी अग्नि-परीक्षा की गाथा।
तब तक निभा चुकी थी मैं पुत्री, पत्नी और माता के दायित्व,
सारे पारिवारिक कर्तव्य
पितृसत्तात्मक जोड़-घटाव और घरेलू कलंक से परे निर्भय।
मेरा हृदयस्पर्शी इतिहास हर पल याद दिलाता राम-रावण
मैं दोहराने को विवश हो जाती अपना परिकल्पन
इस कवितायन का अपूर्व शानदार वर्णन ।
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