XIII
Obsessed was the rakshasha emperor with me
like maggots to the corpse. He launched his only
living son Indrajit with the terrible Brahma-shaft,
the 'Brahmastrat, to outdo his enemy.
Ravana carried out a sacrificial ceremony, making an
offering to the fire, and got hidden into the firmament.
The warrior showered massive arrows
at the vanaaras, tore apart the most important
monkeys by maces and blades. His objects
were Rama-Lakshmana. He released his windfall,
the Brahmastra, sixty-seven crores of vaanaras
and Rama-Laxmana fainted, went to inaction.
Vibhishana and Jambavan asked your
choicest devotee, Hanuman, to proceed to
the Himalayas and get the life-saving herbal medication.
Hanuman, the whimsical, passionate
lover of Siya-Ram, Couldn't recognize the
herbs, so as to bring aid to the deep-drawn.
He singled out the mountain, lifted and
uprooted it from the f mountain, the Rishava mountain.
Breathing in the aroma of the miracle herbs,
Mitra Sanjivani,Vishalya Karanj, suvarna Karanj
And Sandhani, Rama-Lakshamana and the
Monkeys wake up from near-death, heartbeats salaged
Ersthile in the eighteenth century nature became the
Ideal and the source of morala, enlightenment and the
Pursuit of happiness crowing in the call “back to nature”
Were the wisdoms of the philosopher jean-jacques Rousseau
Object was to exact the urban society’s isolation from
Nature. The Rain God who emanates from the sea, enters
the sea back and transports water to our fill, then with passion
and comprehension takes it up, and like the Deity of the inundation becomes obscure; water sparki$4-!s like the divine helm;
it showers without a sojourn like the projectile tempest
to make this creation blissful. Nature redeems. Nature heals.
Nature unfolds itself in multiple layers, Nature graciously greens.
Lord Rama! Your devotee friend Hanuman
would remain immortal for ages to come.
He reinstalled life of his god by his immaculate action.
The enraged monkeys threw fires all over,
Within moments the earth burnt of a tremendous termination,
by Rama, the gates of Lanka stumbled down.
The monkeys surrounded the demons all over
Ravana's nephews and warriors, Kumbha,
Nikumbha, Kampana, Shonitaksha, Yupaksha,
Prajangha, Makaraksha, all got slain over an uncertain dawn.
By hook or by crook, Indrajit wanted to win.
Placing an illusive life-size idol of mine
in his chariot, he entered the battlefield.
When Hanuman and all of your army was
stunned, he pulled the idol by hair,
took out his sword and beheaded her.
With this, my-beloved Rama, you fell into a swoon.
But the gracious Vibhishana told you it was an illusion.
The deceptive trick of Indrajit got exposed.
Then you sent Lakshmana to kill Indrajit
when he was busy doing the sacrificial fire in the
safe haven of Nikumbhila. Your younger brother
accompanied by Hanuman, Vibhishana and
Angada infiltrated the assorted army at Nikumbhila.
A furious battle of arrows between Indrajit and Lakshmana'
He knocked Lakshmana with seven arrows Hanuman
with ten arrows and Vibhishana with hundred, all at once.
Finally, Soumitri killed Indrajit and got fatigued.
Rama much admired his brother, Sushena got him treated.
Hearing this blow, Ravana was ultimately distressed.
Anala, ogre Sarama's daughter, gave me the hearsay
that Ravana was enraged and all set to
kill me, as I was the source of all mess.
I lamented, I was mislead that kiliing you and brother
Lakshmana, now the ten-headed is coming to kill me.
Suparshva, his minister, counseled him to spare a distressed lady.
Ravana was determined now to throw the fiercest blow
Stuck between the holocaust of anguished virtue
and the unyielding conviction, I was contemplating victory.
XIII
रावण की मेरे प्रति आसक्ति,जैसे गिद्ध-वृत्ति
उसने भेजा रण इकमात्र जीवित पुत्र इंद्रजीत,
शत्रु को मारने, साथ लिए ब्रह्मास्त्र ।
रावण ने किया हवन, फिर छिपा गगन
वानरों पर बरसे तीर; गदा-तलवार से कटे उनके शरीर
मगर उसका लक्ष्य था केवल राम-लक्ष्मण ।
उसने छोड़ा ब्रह्मास्त्र अप्रत्याशित
हुए सड़सठ करोड़ वानर धराशायी
और राम-लक्ष्मण मूर्छित ।
विभीषण और जाम्बवान ने की आपस में राय
जाएगा हनुमान दक्षिण हिमालय
और लाएगा संजीवनी का औषधालय।
हनुमान सिया-राम का परम भक्त,
पहचान नहीं सका जड़ी-बूटी का सत ,
उठाकर ले आया जड़ समेत ऋषभ पर्वत।
पीकर चमत्कारिक सुगंधित जड़ी-बूटियों का पानी ,
मृत संजीवनी, विषलयकरणी, सुवर्णकरणी और संधाणी,
जीवित हो उठे वानर और राम-लक्ष्मण, लौटी उनकी धड़कन।
अठारहवीं शताब्दी तक प्रकृति का आदर्श दृष्टांत
नैतिकता, आत्मज्ञान और प्रसन्नता का स्रोत
"प्रकृति की ओर लौटो"– यह था शीर्ष मत ।
दार्शनिक जीन-जैक्स रूसो के बुद्धि की गागर
प्रकृति से शहरी समाज होता जा रहा अति दूर
सागर से निकल जल-देवता, समा जाते फिर सागर।
देवता देते हमारे लिए आवश्यक जल,
अनुराग-बुद्धि से मानव हो जाता विफल
जल-देवी हो जाती विलुप्त; बची रह जाती पानी की दैविक चमक।
वृष्टि अथक अनवरत बनाती सुंदर सृष्टि
भरकर अपने घाव पुनर्विकसित होती प्रकृति
खोलती खुद की कई परतें हरीतिमा में, प्रकृति।
भगवान राम! तुम्हारा परमभक्त मित्र हनुमान
आने वाले युगों तक रहेगा अजर-अमर
अपने निर्मल कार्य से पुनः स्थापित करेगा, तुम्हें भगवान।
क्रोधित वानरों ने फेंकी चारों ओर आग,
मची जबरदस्त तबाही उस भू-भाग
राम ने तोड़ा लंका के दरवाजों का अग्र-भाग ।
वानरों ने चारों तरफ से घेरा, राक्षसों का धरण
रावण के भतीजे और योद्धा, कुंभ,निकुंभ, कम्पन,
शोनिताक्ष, युपाक्ष, प्रजंघ, मकरक्ष- सभी का हुआ मरण।
किसी भी तरह इंद्रजीत बनना चाहता था शिरमोर
मायावी सीता की मूर्ति का तलवार से काटा उसने सिर
हनुमान और तुम्हारी सारी सेना हुई निस्तब्ध और गंभीर।
यह देख, मेरे प्यारे राम, थम गया तुम्हारा दिल
विभीषण ने तुम्हें बताया, यह माया का खेल
हुई उजागर इंद्रजीत की घटिया चाल ।
फिर नियुक्त किया तुमने इंद्रजीत को मारने के लिए लक्ष्मण
जब वह निकुम्भिला का सुरक्षित आश्रम में कर रहा था हवन
लक्ष्मण ने हनुमान, विभीषण और अंगद के संग किया आक्रमण ।
इंद्रजीत और लक्ष्मण के बीच शुरू हुआ बाणों का युद्ध महियान
मारे एक ही बार में लक्ष्मण को सात, हनुमान को दस बाण
और विभीषण को सौ बाणों का यान ।
अंत में, सौमित्रि ने मार डाला इंद्रजीत, फिर थकान से हो गए अचेत
सुषेण की चिकित्सा से लौट आया चेता, यह देख राम हुए हर्षित
यह झटका रावण नहीं कर सका बर्दाश्त ।
अनला, सरमा की बेटी, ने मुझे कहा-रावण है अतिकुपित
तुम्हें मारने की बना रहा है रणनीति,
‘तुम इस युद्ध की जड़ हो।’- यह है उसकी मति ।
रोई, भ्रमित हुई, तुम्हारी और लक्ष्मण की मौत का झूठा दृश्य देखकर
अब दशानन आ रहा मुझे मारने, हाथों में लिए हथियार
सुपार्श्व, उनके मंत्री ने कहा, एक दुखी नारी पर मत करो और अत्याचार।
रावण से करने जा रहा था मुझ पर प्रहार
फंस गया अंतर्द्वंद्व, जाग उठे संस्कार
मुझे यकीन हुआ, अब नहीं होगी हमारी हार ।
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