XVII
Our union alter one long year was a celestial affair.
Lord Shiva, Dcvrajlndra and others descended in the heavenly car,
The replica of your father, king Dasharatha, his soul
came along with the cosmic beings to bless us all.
Father and sons were elated at the reunion.
Dasharatha told, after fourteen years, its time to return.
He asked Rama to go back to the Ayodhya throne.
"Meet Bharata, Shatrughna and your mothers .
Hail the peaceful Rarnarajya", Dasharatha recommends.
Vibhishana, the king of Lanka, gifted us Pushpaka, the aerial car.
We took leave of the rakshasas and vanaaras dear.
On the way we landed at Sage Bharadwaja's hermitage.
Our bereaved hearts needed this peaceful submerge.
We reached Ayodhya-- Rama, Lakshmana and myself
with beloved Hanuman and met all with reciprocal forgiveness.
At this vintage point I remembered and narrated
Our three queen mothers about Lanka, Asokavana, Kishkindhya, Janasthana, Panchavati and Chitrakuta.
Brother Bharata asked Maruti the
minutiae of our days and years spent in banishment.
The excited inhabitants of Ayodhya gave us a welcome polite.
Brother Bharata gave his command with joyous concern
ordered the city to burnish with stars and moons a like.
Poets, minstrels, priests Chanted soulful music.
Womenfolk sang the song of picas Love and faith.
Mata Sita was their idol, ideal, they took this oath.
Courtly chieftains and marshaled forces along the city gate.
Bharata and Shatrughqa came with Rama's sandals
still glorifying the throne of Ayodhya, in the royal chariot.
Bharata took out the royal sandals, the jewels intact
"'Our noble brother, please accept your
royal sandals back, they have been your
tokens of order, sovereignty and blessing for me.
Take charge of your equitable crown, I am your slave.
This life whatever sin my mother committed
Ayodhya paid for it, and so all of us have.
I pray the almighty to make me your brother
each life and allow me to serve your gracious self .
I pray Rishi Vashishta to do your consecration
Let Rama-Rajya be no more a virtual reality.
Sing, oh musical choirs, get the sacred waters.
Let Lord Rama and Mata Sita be our king and queen.'
To fetch the sacred waters Jambavan went to the Eastern Ocean.
Rishaba went to fetch from the Ocean Southern.
Gavaya was-sent for water from the Western.
Hanuman flew to the Northern seas, all commotion.
Galaxy of learned men like Vashishta, Vijaya
Vamadeva, Katyayana, Kashyapa consecrated Rama.
Heavens showered holy flowers, all anointed me and Raghava. Gcndharvas sang, Apsaras danced, restoration of hope and love.
Shone King Dasharatha's crown and jewels on Rama's robe.
That day I gifted my necklace to son Hanuman.
He was over the moon, this was a blissful token.
His dedication and power, had triumphed my admiration.
Three mothers were happy especially queen Kaikeyi, was
overwhelmed with tearful ecstasy and deepest regret.
She begged forgiveness to us for the years lost.
Rich-hearted Raghava in whom merit is twofold with might,
who is most renowned for his astuteness and intellect
forgave her and touched his mother's feet.
Bharata discarding his ascetic robe joined Mandavi.
Lakshmana joined angelic Urmila, his clairvoyant wife.
From the mire of evil we ushered into a good life.
Kaikeyi embraced me with grief for her action.
I told, "crookback Manthara had this motivation.
Exonerate the episode and forget, mother, your past action."
Srutakirti, my sister, Shatrughna's wife, showed
me some canvasses, and I was shocked to the heart!
They were paintings by my visionary, mystic,
telepathist sister Urmila, with flashes of solidity.
She had seen with her internal vision some
panorama from our exile-days. Between her fourteen
years of sleep and sporadic sittings she
had painted me assembling morose in Asoka vana,
surrounded by ogresses, demonesses. In some painting me
running after the golden deer; my arable farm house
in Chitrakuta and Lakshman serving his brother.
I was deeply moved to see her exotic Madhubani paints.
The Ramayana is not only my story, the story of solitary Sita.
I have distinguished many a women in my lifetime whose
silence is their power; withdrawing from joy, they
enjoy. They are ultimate form of 'Bhakti' and Shakti.
Urmila was like goddess Lakshmi, Mandavi
was like Saraswati Sukriti was Kali, they are the surreal ones.
That day I met Tara and Ruma, the wives
of Sugreeva. Tara was still grieved about
my fire-baptism. "Why only woman has to endure?"
"Tara, you are elder to my by age and wisdom.
But is there, to every thing, an indisputable reason?
Why did your ex-husband Vali get killed by Rama?
Why did you have to marry the killer of your husband?
Why queen mother Kaikeyi had such blind obsession?
Why were there uncountable deaths in Lanka?
Was it just to give Ravana his resurrection?
How would you define womanly chastity?
To me, what administers human affairs
is a changing, resilient, radical, sweeping ethic.
Purity of the intellect, spirit and heart is the basic.
When supreme ego dominates one, the other has to be sympathetic."
On the way back, I asked myself, how could
the designation of luminosity, adoration harmony and existence
get defeated, and become sundown, odium, heartache and death.?
XVII
दीर्घ समय बाद अलौकिक घटना बनी हमारा मिलन
भगवान शिव, देवराज इन्द्र और अन्य देवताओं का स्वर्ग से हुआ अवतरण,
साथ में था तुम्हारे पिता, राजा दशरथ, की आत्मा का प्रतिकरण ।
देने पहुंचे धरती पर हमें वरदान
पिता और पुत्रों का हुआ पुनर्मिलन
चौदह साल बाद, ऐसा सुअवसर अयोध्या के आँगन ।
कहा दशरथ ने,“विराजमान हो राम,अयोध्या-सिंहासन
भरत, शत्रुघ्न और अपनी माताओं से करो मिलन
शांतिपूर्ण रामराज्य की जय हो, मेरे आशीर्वचन।”
लंकेश विभीषण ने भेंट किया हमें पुष्पक-विमान
स्वीकारा हमने, राक्षसों और वानरों का अंतिम अभिवादन
रास्ते में हमें ऋषि भारद्वाज का आश्रम-वन ।
शोक संतप्त हृदयों को चाहिए था शांतिपूर्ण वातावरण
अयोध्या पहुँचे हम- सीता,राम और लक्ष्मण
कुशल-क्षेम सभी से, साथ में थे प्रिय हनुमान।
तभी तरोताजा हो गया, मुझे अतीत का स्मरण
लंका, किष्किंधा, चित्रकूट, पंचवटी,अशोकवन
तीनों राजमाताओं को सुनाए मैंने आप-बीते कथन।
भाई भरत ने पूछा, हे हनुमान !
कैसे बीते तुम्हारे दिनरात राम के निर्वासन ?
अयोध्या-नगरी ने किया हमारा अभिवादन ।
भाई भरत ने खुशी से दिया आदेश
चाँद-सितारों की तरह जगमगाए हमारा प्रदेश
कवि,मंत्री,पुजारी करें मधुर संगीत का उद्घोष।
महिलाओं ने गाए अमर प्रेम-आस्था के गीत सुगम
माता सीता के आदर्श की खाई उन्होंने कसम
शहर के मुख्य-द्वार की ओर सेनापतियों के बढ़े कदम।
राम की खड़ाऊँ लेकर आए भरत और शत्रुघ्न
शाही रथ में अभी भी रखी थी जैसे हो अयोध्या का सिंहासन
नतमस्तक होकर उतारी भरत ने खड़ाऊँ, जैसे हो विशुद्ध स्वर्ण ।
“ हमारे बड़े भाई, कृपया करें स्वीकार
शाही खड़ाऊँ आपकी इस अवसर
मेरे लिए थी आदेश, संप्रभुता और आशीर्वाद का प्रकार।
मैं हूँ दास, अब न्यायोचित मुकुट का संभालो भार आप
इस जन्म में मेरी माँ ने जो भी किया पाप
अयोध्या ने भुगता, हमारा भी जघन्य अपराध।
प्रभु,बनाना मुझे अपना भाई हर जीवन
सेवा करता रहूँ सदैव आपके चरण
ऋषि वशिष्ठ से प्रार्थना, करें आपका अभिषेक-वंदन।
राम-राज्य नहीं रहा अब कोई सपन
गाओ, मृदु गायन, करो पवित्र जल-वर्षण
भगवान राम और माता सीता, बनें हमारे राजा-रानी। '
पवित्र जल लाने जाम्बवान गए पूर्वी महासागर
ऋषभ चले गए दक्षिणी महासागर
गवाया को भेजा पश्चिमी महासागर ।
हनुमान उड़े उत्तरी समुद्र, सभी हुए स्तब्ध
वशिष्ठ, विजय,वामदेव, कात्यायन, कश्यप
सभी ने किया राम का राज्याभिषेक विधिबद्ध ।
स्वर्ग से मेरे और राघव पर हुई पुष्पों की बरसात
गन्धर्व,अप्सराओं नृत्य-गीत में मुखरित हुए प्रेम,आशा के स्वर
राम के सिर पर राजा दशरथ का मुकुट और गले में रत्नहार ।
उस दिन मैंने पुत्र हनुमान को दिया अपना हार उपहार
वह बहुत खुश था- यह था एक सुखद संकेत
उसकी भक्ति-शक्ति ने लिया था मेरा हृदय जीत ।
तीन माताएँ विशेष रूप से रानी कैकेयी थी प्रसन्न
लिए अश्रुल आनंद और गहरे दुख का सम्मिश्रण
हमारे चौदह साल के निर्वासन पर किया क्षमा-याचन।
हृदय के धनी राघव, गुणनिधान
विख्यात सूक्ष्म-बुद्धिमान
माफ कर छुए माँ के चरण ।
भरत ने मांडवी-मिलन के लिए तजा वैरागी परिधान
दिव्य-पत्नी उर्मिला से मिले बेचैन लक्ष्मण
बुराई की आग से निकलकर हमने शुरू किया नव-जीवन।
कैकेयी ने क्षमा मांगते किया मुझे आलिंगन
मैंने बताया, “बदमाश मंथरा बनी आपकी प्रेरणा
माँ, भूल जाएँ अतीत और सारा प्रकरण । "
शत्रुघ्न की पत्नी, श्रुतकीर्ति- मेरी बहन ने दिखाए कुछ चित्रफ़लक
मैं हुई हतप्रभ और आश्चर्यचकित! दूरदर्शी, निसंग, दिव्य-झलक
बहन उर्मिला ने बनाए उन्हें, लिए ऐकांतिक चमक ।
अपनी अंतर-दृष्टि से देखा शायद हमारा निर्वासन
चौदह वर्ष की नींद में कभी-कभार उसका जागरण
राक्षसों से घिरी अशोक-वन में मेरी उदासी का चित्रण।
स्वर्ण मृग के पीछे भागते मेरे कुछ चित्र; तो कुछ खेत के मैदान
कहीं चित्रकूट में राम की सेवा करता लक्ष्मण
मधुबनी रंगों का उनमें अनोखा सम्मिश्रण ।
केवल मेरी अर्थात् निसंग सीता की कहानी नहीं है रामायण
मेरे जीवनकाल में ऐसी कई नारियां आई, जिनकी शक्ति थीं मौन;
जीवन का आनंद त्याग कर भी वे बनी महान।
वे हैं अभी भी 'भक्ति' और ‘शक्ति’ के परम रूप
उर्मिला माता लक्ष्मी, तो मांडवी सरस्वती,
श्रुतिकृति देवी काली का स्वरूप।
उस दिन सुग्रीव की पत्नियों तारा और रूमा से हुआ मिलन
तारा अभी भी दुखी थी, सुन मेरा अग्नि-परीक्षण
"केवल महिला ही क्यों करेगी सहन ?"
“तारा, तुम उम्र और बुद्धि में मुझसे हो महान
क्या किसी चीज का होता है निर्विवाद कारण ?
आपके पूर्व पति बाली को राम ने क्यों मारा?
अपने पति के हत्यारे से आपको शादी क्यों करनी पड़ी?
क्यों रानी माँ कैकेयी को इतना अंध-लगाव था?
लंका में बेशुमार मौतें क्यों हुईं?
क्या सिर्फ रावण को मुक्त होना था?
आप सतीत्व को कैसे परिभाषित करोगी ?
मेरे लिए, मानव व्यवहार परिवर्तनशील,लचीला,मौलिक,नैतिकता से परे है।
होनी चाहिए बुद्धि, आत्मा और हृदय की पवित्रता
जब सर्वोच्च अहंकार छा जाता है दूसरे पर,
तब दूसरे को होती है सहानुभूति की जरूरत । ”
लौटते समय, मैंने खुद से पूछा, क्या यह है संभव
पराजित हो इज्जत, आराधना,अस्तित्व और सद्भाव
और बन जाए अपमान, दिल का दर्द और मौत का फतवा ।
No comments:
Post a Comment